सिखों के नौवें गुरु श्री तेग बहादुर जी का 400 वां प्रकाश पर्व 24 अप्रैल 2022 Guru Tegh Bahadur Jayanti 2022:
सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल 1621 को पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। ये गुरु हरगोविन्द जी के पांचवें पुत्र थे। सिखों के आठवें गुरु ‘श्री हरिकृष्ण राय’ जी की अकाल मृत्यु हो जाने के कारण जनमत द्वारा गुरु तेग बहादुर जी को नवम गुरु बनाया गया। इन्होंने आनन्दपुर साहिब का निर्माण कराया और ये वहीं रहने लगे थे। उनका बचपन का नाम त्यागमल था। गुरु तेग बहादुर जी की माता जी का नाम गुजरी था। मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुग़लों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने वीरता का परिचय दिया। उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर (तलवार के धनी) रख दिया।
‘बाबा बकाला’ में साधना की गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी ने
रणभूमि में भीषण रक्तपात के कारण गुरु तेग बहादुर जी के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और उनका मन आध्यात्मिक चिंतन की ओर उन्मुख हो गया। धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग बहादुर जी ने एकांत में लगातार 20 वर्ष तक ‘बाबा बकाला’ नामक स्थान पर साधना की। गुरु जी ने धर्म के प्रसार लिए कई स्थानों का भ्रमण किया। आनंदपुर साहब से कीरतपुर, रोपण, सैफाबाद होते हुए वे खिआला (खदल) पहुंचे। यहां उपदेश देते हुए दमदमा साहब से होते हुए हरियाणा के कुरुक्षेत्र पहुंचे। कुरुक्षेत्र से यमुना के किनारे होते हुए कड़ामानकपुर पहुंचे और यहीं पर उन्होंने साधु भाई मलूकदास का उद्धार किया।
इसके बाद गुरु तेग बहादुर जी प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में गए, जहां उन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किए। रूढिय़ों, अंधविश्वासों की आलोचना कर परोपकार का संदेश दिया। उन्होंने परोपकार के लिए कुएं खुदवाना, धर्मशालाएं बनवाना आदि कई समाजहित के कार्य भी किए। इन्हीं यात्राओं में 1666 में गुरुजी के पटना साहिब में पुत्र का जन्म हुआ, जो सिखों के दसवें गुरु- गुरु गोविंद सिंह बने।
औरंगजेब को गीता सुनाई पंडित के बेटे ने
गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु ( Ninth Guru of Sikhism, Guru Tegh Bahadur Ji) माने जाते हैं। औरंगजेब के शासन काल की बात है। औरंगजेब के दरबार में एक विद्वान पंडित आकर रोज गीता के श्लोक पढ़ता और उसका अर्थ सुनाता था, पर वह पंडित गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था जिनसे ओरंगजेब के नाराज होने का डर था। एक दिन पंडित बीमार हो गया और औरंगजेब को गीता सुनाने के लिए उसने अपने बेटे को भेज दिया परन्तु उसे बताना भूल गया कि उसे किन-किन श्लोकों का अर्थ राजा के सामने नहीं करना था, गड़बड़ी यहीं हो गई। पंडित के बेटे ने जाकर औरंगजेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया। गीता का पूरा अर्थ सुनकर औरंगजेब को यह ज्ञान हो गया कि प्रत्येक धर्म अपने आप में महान है किन्तु औरंगजेब की हठधर्मिता थी कि वह अपने के धर्म के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा सहन नहीं थी। औरंगजेब ने सबको इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दे दिया और संबंधित अधिकारी को यह कार्य सौंप दिया। औरंगजेब ने फरमान सुनाते हुए कहा -सबसे कह दो या तो इस्लाम धर्म कबूल करें या मौत को गले लगा लें। इस प्रकार की जबर्दस्ती शुरू हो जाने से अन्य धर्म के लोगों का जीवन कठिन हो गया।
गुरु गोविंदसिंह ने क्या कहा गुरु तेग बहादुर को
जुल्म से ग्रस्त कश्मीर के पंडित गुरु तेग बहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस प्रकार इस्लाम को स्वीकार करने के लिए अत्याचार किया जा रहा है, यातनाएं दी जा रही हैं, हमें मारा जा रहा है। कृपया आप हमारे धर्म को बचाइए। गुरु तेग बहादुर जब लोगों की व्यथा सुन रहे थे, उनके 9 वर्षीय पुत्र बाला प्रीतम (गुरु गोविंदसिंह) वहां आए और उन्होंने पिताजी से पूछा-‘पिताजी, ये सब इतने उदास क्यों हैं? आप क्या सोच रहे हैं?’
गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों की सारी समस्याएं बाला प्रीतम को बताईं तो उन्होंने पूछा- ‘इसका हल कैसे होगा?’
गुरु साहिब ने कहा- ‘इसके लिए बलिदान देना होगा।’
बाला प्रीतम ने कहा-‘आपसे महान पुरुष कोई नहीं है। बलिदान देकर आप इन सबके धर्म को बचाइए।’
उस बच्चे की बातें सुनकर वहां उपस्थित लोगों ने पूछा- ‘यदि आपके पिता बलिदान देंगे तो आप यतीम हो जाएंगे। आपकी मां विधवा हो जाएंगी।’
बाला प्रीतम ने उत्तर दिया- ‘यदि मेरे अकेले के यतीम होने से लाखों बच्चे यतीम होने से बच सकते हैं या अकेले मेरी माता के विधवा होने जाने से लाखों माताएँ विधवा होने से बच सकती है तो मुझे यह स्वीकार है।’
तत्पश्चात् गुरु तेग बहादुर जी ने पंडितों से कहा कि आप जाकर औरंगजेब से कह दें कि यदि गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उनके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे और यदि आप गुरु तेग बहादुर जी से इस्लाम धारण नहीं करवा पाए तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे। औरंगजेब ने यह स्वीकार कर लिया।
गुरु तेग बहादुर पर औरंगजेब ने ढहाए जुल्म
गुरु तेग बहादुर दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में स्वयं गए। औरंगजेब ने उन्हें बहुत से लालच दिए, पर गुरु तेग बहादुर जी नहीं माने तो उन पर जुल्म किए गए, उन्हें कैद कर लिया गया। दो शिष्यों को मारकर गुरु तेग बहादुर जी को डराने की कोशिश की गयी, पर वे नहीं माने। उन्होंने औरंगजेब से कहा- यदि तुम जबर्दस्ती लोगों से इस्लाम धर्म ग्रहण करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो, क्योंकि इस्लाम धर्म यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके मुस्लिम बनाया जाए।
गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान (Guru Tegh Bahadur was beheaded in Delhi in 1675)
औरंगजेब यह सुनकर आग बबूला हो गया। उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर जी का शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया और गुरु जी ने 24 नवम्बर 1675 को हँसते-हँसते बलिदान दे दिया। गुरु तेग बहादुरजी की याद में उनके ‘शहीदी स्थल’ पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा ‘शीश गंज साहिब’ है। (The day of his execution is observed as Guru Tegh Bahadur Martyrdom Day on November 24)
गुरु तेग बहादुर जी ने कई रचनाएं लिखी
गुरु तेग बहादुर जी की बहुत सी रचनाएं ग्रंथ साहिब के महला 9 में संग्रहित हैं। इन्होंने शुद्ध हिन्दी में सरल और भावयुक्त ‘पदों’ और ‘साखी’ की रचनायें की। सन् 1675 में गुरु जी धर्म की रक्षा के लिए अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध अपने चार शिष्यों के साथ धार्मिक और वैचारिक स्वतंत्रता के लिए शहीद हो गए। उनके अद्वितीय बलिदान ने देश की ‘सर्व धर्म सम भाव’ की संस्कृति को सुदृढ़ बनाया और धार्मिक, सांस्कृतिक, वैचारिक स्वतंत्रता के साथ निर्भयता से जीवन जीने का मंत्र भी दिया।
गुरु तेग बहादुर जी की स्मृति में कई गुरुद्वारे हैं हरियाणा में
सिख धर्म के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी, जिन्हें ‘हिंद की चादर’ के नाम से जाना जाता है, के योगदान और राष्ट्र के प्रति उनके अटूट प्रेम और समर्पण को कभी नहीं भुलाया जा सकता। उन्होंने अपने जीवन काल में अपने शिष्यों को जो मानवता, त्याग, शांति और सद्भाव की शिक्षा दी थी, वह आज भी प्रासंगिक है।
सिख समुदाय का एक समृद्ध और गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। हरियाणा में जहां भी सिख गुरुओं ने दौरा किया और यात्रा की, वहां-वहां उनकी याद में गुरुद्वारों का निर्माण किया गया। आज ये गुरुद्वारे हम सभी को उन आध्यात्मिक और परम श्रद्धेय गुरुओं की याद दिलाते हैं। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने मुगलों के आगे झुकने से इंकार कर दिया था और इसके लिए उन्होंने अपने प्राण भी न्यौछावर कर दिए थे, इसलिए उन्हें समर्पित हर गुरुद्वारा हरियाणा के लिए एक अमूल्य विरासत बना रहेगा।
गुरुद्वारा पातशाही नौवी (नौवां), खरक भूरा, जींद
श्री गुरु तेग बहादुर जी 1665 में खरक भूरा पहुंचे थे। गुरु साहिब यहां एक रात रुके और उपदेश दिए। उन्होंने अपने शिष्यों को सत्य और ईश्वर की एकता के मार्ग पर चलने की सलाह दी। गुरु साहिब की याद में यहां एक गुरुद्वारा साहिब बनाया गया है। गांव खरक भूरा नरवाना से 14 किलोमीटर और जींद से 25 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा, श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जींद के खटकड़ गांव पहुंचे और संगत को धार्मिक प्रवचन दिए। इस स्थान पर एक सुंदर गुरुद्वारा बनाया गया है जो खटकड़ रेलवे स्टेशन से 2 किलोमीटर, जींद से 11 किलोमीटर और नरवाना से 26 किमी दूर स्थित है।
गुरुद्वारा मंजी साहिब पातशाही नौवी, जींद
जब श्री गुरु तेग बहादुर साहिब गांव खटकड़ से जींद पहुंचे तो उन्होंने इलाके के आसपास कई कुएं और पानी की टंकियां बनाकर लोगों की मदद की। अब राजसी गुरुद्वारा मंजी साहिब जींद शहर की शोभा बढ़ा रहा है। यह गुरुद्वारा क्षेत्र में उनके धार्मिक और सामाजिक योगदान की एक अनूठी स्मृति है और जींद के मुख्य बस स्टैंड से लगभग एक किलोमीटर दूर रानी तालाब और रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित है।
गुरुद्वारा मंजी साहिब पातशाही नौवी, रोहतक
श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने अपने मिशनरी दौरे पर इस क्षेत्र की संगत को आशीर्वाद देने के लिए रोहतक के गांव लाखनमाजरा में ठहराव किया था। गुरु साहिब यहां कई दिनों तक रहे और नियमित धार्मिक सभाएं की। पीने के पानी की कमी को देखते हुए गुरु साहिब ने इस क्षेत्र में कई कुओं और एक साफ पानी के तालाब का निर्माण करवाया। क्योंकि यहां गुरु साहिब के चरण पड़े थे जिससे यह स्थान पवित्र हो गया और इसीलिए यहां गुरुद्वारा मंजी साहिब पातशाही नौवी का निर्माण किया गया। यह गुरुद्वारा साहिब रोहतक और जींद के बीच है तथा रोहतक से लगभग 23 किलोमीटर दूर स्थित है।
गुरुद्वारा बंगला साहिब पातशाही नौवी, रोहतक
जब श्री गुरु तेग बहादुर साहिब अपने आध्यात्मिक प्रचार मिशन के दौरान रोहतक शहर आए तो वे यहां तीन दिनों तक ठहरे और उन्होंने संगत के लिए नियमित उपदेश दिए। गुरु साहिब ने इस क्षेत्र के आस-पास भी कुओं के निर्माण में मदद की। उनकी यात्रा के संस्मरण के रूप में गुरुद्वारा बंगला साहिब बाबर मौहल्ला में बनाया गया था, जो रोहतक के मुख्य बस स्टैंड से 4 किलोमीटर और रेलवे स्टेशन से 2.5 किलोमीटर दूर स्थित है।
गुरुद्वारा नीम साहिब पातशाही नौवी, कैथल
जब श्री गुरु तेग बहादुर जी कैथल पहुंचे तो वे यहां एक नीम के पेड़ की छाया में विश्राम करने के लिए रुके। उन्होंने इस क्षेत्र में संगत के लिए शाश्वत उपदेश दिए। उस जगह के चारों ओर नीम के पेड़ थे, इसलिए यह स्थान गुरुद्वारा ‘नीम साहिब’ के नाम से जाना जाने लगा। यह गुरुद्वारा साहिब कैथल शहर के बाहरी इलाके में पश्चिम की ओर स्थित है जो मुख्य बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन से समान दूरी 4 किलोमीटर पर है।
गुरु साहिब कैथल में एक अन्य स्थान पर भी रुके थे जहां वे सुबह और शाम नियमित प्रवचन करते थे। श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की याद में एक गुरुद्वारा है। यह गुरुद्वारा नीम साहिब से एक किलोमीटर, मुख्य बस स्टैंड से 3 किलोमीटर और रेलवे स्टेशन से 3.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गुरुद्वारा गढ़ी साहिब पातशाही नौवी, जो श्री गुरु तेग बहादुर जी की स्मृति में बने हैं, गांव गढ़ी नाजिर में स्थित है। यह गुरुद्वारा समाना से 4 किलोमीटर तथा चीका से 23 किलोमीटर दूर स्थित है।
गुरुद्वारा श्री तेग बहादुर साहिब खानपुर, करनाल
श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने अपना धार्मिक उपदेश देते हुए खानपुर का दौरा किया था। उन्होंने इलाके की संगत को औरंगजेब द्वारा किए जा रहे अत्याचारों का सामना करने के लिए तैयार रहने का आह्वान किया। यहां एक पुराना किला और एक कुआं है जो गुरु साहिब के समय का है। यह स्थान इंद्री बस स्टैंड से 7 किलोमीटर और लाडवा बस स्टैंड से 9 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा, करनाल के गांव तरावड़ी में गुरुद्वारा शीश महल भी गुरु साहिब पातशाही नौवी को समर्पित है।
गुरुद्वारा कारह साहिब पातशाही नौवी, कुरुक्षेत्र
श्री गुरु तेग बहादुर साहिब से पहले, श्री गुरु नानक जी ने इस स्थान पर अपने चरण रखे थे और श्री गुरु हरगोबिंद साहिब ने भी इस स्थान का दौरा किया था। गुरु साहिबान की याद में यहां एक भव्य गुरुद्वारा साहिब बनाया गया है। यह स्थान कारह बस स्टैंड से आधा किलोमीटर की दूरी पर, पिहोवा से 12 किलोमीटर, चीका से 18 किलोमीटर और घड़म से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गुरुद्वारा शीश महल पातशाही नौवी भी पिहोवा में स्थित है।
गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवी, बारना, कुरुक्षेत्र
श्री गुरु तेग बहादुर जी ने वर्ष 1665 में इस स्थान पर अपनी पवित्र यात्रा की थी। गुरु साहिब ने कैथल से किरतपुर साहिब तक की यात्रा गांव बारना, कुरुक्षेत्र के रास्ते धर्म का प्रचार करते हुए की थी। यह खूबसूरत गुरुद्वारा साहिब बारना गांव में गुरु साहिब को समर्पित है। यह स्थान कुरुक्षेत्र से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवी कुरुक्षेत्र के अजराना कलां, सलेमपुर और थानेसर गांवों में भी स्थित है। गुरुद्वारा दुधी साहिब, गुरुद्वारा बनी बदरपुर साहिब पातशाही नौवी भी कुरुक्षेत्र में गुरु साहिब की स्मृति को संरक्षित करते हैं। सोनीपत में गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवी भी श्री गुरु तेग बहादुर जी को समर्पित है।
गुरुद्वारा श्री मंजी साहिब, मुनियारपुर, कुरुक्षेत्र
यह गुरुद्वारा पातशाही नवी की याद में निर्मित एक भव्य संरचना है। श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने यहां रहते हुए संगत को गुरबाणी की शिक्षाओं से अवगत कराया और सिख धर्म के तीन स्तंभों का पालन करने का उपदेश दिया : नाम जपना (भगवान का ध्यान); किरत करणी (ईमानदार जीवन); वंद चकना (दूसरों के साथ साझा करना)।
वर्तमान में इस स्थान पर गुरुद्वारा मंजी साहिब की एक खूबसूरत इमारत सुशोभित है। यह स्थान लाडवा से 9 किलोमीटर और कुरुक्षेत्र के नए बस स्टैंड से 12 किलोमीटर की दूरी पर है।
गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब, हरनौल, यमुनानगर
श्री गुरु तेग बहादुर जी ने 1656 में पटना साहिब जाते समय इस स्थान की यात्रा की थी। यहां गुरु साहिब के समय का एक पुराना कुआं और एक झील है। यहां पर एक गुरुद्वारा साहिब श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की याद में बनाया गया है। यह स्थान यमुनानगर से 11 किलोमीटर और जगाधरी बस स्टैंड से 16 किलोमीटर की दूरी पर है। गुरुद्वारा थारा साहिब पातशाही नौवी, झिवेरी, यमुनानगर में भी एक ऐतिहासिक गुरुद्वारा है जिसने गुरु साहिब की स्मृति को संजोए रखा है, 1656 में यहां गुरु साहिब आए थे।
गुरुद्वारा मंजी साहिब पातशाही नौवी यमुनानगर का एक प्रसिद्ध गुरुद्वारा है। इसी तरह, यमुनानगर में अन्य गुरुद्वारे स्थापित किए गए जहां गुरु साहिब ने दौरा किया, इनमें गुरुद्वारा तेग बहादुर साहिब बुरिया शामिल हैं।
गुरुद्वारा मरदों साहिब पातशाही नौवी, भानोखेड़ी, अंबाला
पटना साहिब से लौटते समय श्री गुरु तेग बहादुर साहिब अपने परिवार के साथ यहां पहुंचे थे। यह जगह मरदों गांव के बाहर स्थित है। गुरु तेग बहादुर साहिब ने इस स्थान पर संगत को धर्म का उपदेश दिया जो जलबेड़ा रोड़ पर अंबाला से 13 किलोमीटर और मटेहड़ी गांव से 5 किलोमीटर की दूरी पर है। गुरुद्वारा शीश गंज साहिब पातशाही नौवी को भी अंबाला में गुरु साहिब की याद में बनाया गया था। इसी तरह, अंबाला शहर में गुरुद्वारा लखनौर साहिब पातशाही नौवी, लखनौर, गुरुद्वारा सत्संगत साहिब, अंबाला शहर और गुरुद्वारा पातशाही नौवी, लंगर चन्नी भी श्री गुरु तेग बहादुर जी की स्मृति में निर्मित किए गए हैं।
मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने गुरु साहिब के त्याग और बलिदान को याद करते हुए कई बड़ी घोषणाएं
मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने एक अन्य घोषणा करते हुए कहा कि श्री गुरु तेग बहादुर जी ने लड़ते वक्त जिन शस्त्रों का प्रयोग किया, उनकी प्रदर्शनी देशभर में लगाई जाएगी। उन्होंने यह फैसला किया है कि इन शस्त्रों को लेकर जाने वाला वाहन हरियाणा सरकार अपनी ओर से भेंट देगी।
अपने संबोधन से मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने मुख्य पंडाल में पहुंचकर सबसे पहले गुरु ग्रंथ साहिब जी के सामने शीश नवाया। इसके बाद अपने समागम स्थल पर पहुंची लाखों की संगत का हाथ जोड़कर अभिवादन किया। उन्होंने कहा कि श्री गुरु तेग बहादुर जी ने अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते हुए अपना बलिदान दिया था। आज उनके 400वें प्रकाश पर्व को आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत मनाया जा रहा है। इस समागम का मुख्य मकसद भी यही है कि श्री गुरु तेग बहादुर जी के त्याग, बलिदान, संघर्ष की गाथा जन-जन तक पहुंचे और हमारी आने वाली पीढ़ियां उनसे प्रेरणा लें।