सीआरपीएफ का स्थापना दिवस कब है ? History

 सीआरपीएफ का स्थापना दिवस कब है ? History

CRPF History


केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल 27 जुलाई 1939 को क्राउन रिप्रेजेन्टेटिव के पुलिस के रूप में अस्तित्व में आया जो 28 दिसंबर 1949 को सीआरपीएफ अधिनियम के लागू होने पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल बन गया । केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल गौरवशाली इतिहास के 83 वर्ष पूरे कर चुका है | यह बल 246 बटालियनों (203 जी डी बटालियन, 05 वी आई पी सुरक्षा बटालियन, 06 महिला बटालियन, 15 आर.ए.एफ. बटालियन, 10 कोबरा बटालियन, 05 बेतार बटालियन, 01 विशेष ड्यूटी ग्रुप और 1 संसदीय ड्यूटी ग्रुप), 43 ग्रुप केंद्रों, 22 प्रशिक्षण संस्थानों, 03 सी.डब्ल्‍यू.एस., 07 ए.डब्‍ल्‍यू.एस., 03 एस.डब्‍ल्‍यू.एस., 100 बिस्तरे वाले 04 संयुक्त अस्पतालों और 50 बिस्तरे वाले 18 संयुक्त अस्पतालों एवं 06 फील्ड अस्पतालों के गठन से बना हुआ एक बड़ा संगठन है।

केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल का ध्येय क्या है ?

केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल का ध्येय है कि वह संविधान को सर्वोपरि बनाये रखते हुए, प्रभावशाली एवं दक्षतापूर्ण तरीके से विधि-व्यवस्था, लोक व्यवस्था एवं आन्तरिक सुरक्षा को कायम रखने में सरकार को समर्थ बनाये, ताकि राष्ट्रीय-अखण्डता अक्षुण्ण बनी रहे और सामाजिक-सौहार्द तथा विकास का मार्ग प्रशस्त हो.

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सीआरपीएफ दिवस की बधाई दी


प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सभी सीआरपीएफ कर्मियों और उनके परिवारों को स्थापना दिवस की बधाई दी है।
प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया;
“सभी @crpfindia कर्मियों और उनके परिवारों को स्थापना दिवस की बधाई। इस बल ने अपने अदम्य साहस और विशिष्ट सेवा के लिए स्वयं को प्रतिष्ठित सम्मानित किया है। सुरक्षा चुनौतियां हों, या मानवीय चुनौतियां; इनसे निपटने में सीआरपीएफ की भूमिका सराहनीय है।”

सीआरपीएफ का इतिहास/ History of CRPF

आंतरिक सुरक्षा के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलि बल (सीआरपीएफ) भारत संघ का प्रमुख केंद्रीय पुलिस बल है। यह सबसे पुराना केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बल (अब केंद्रीय सशस्‍त्र पुलिस बल के रूप में जानते हैं) में से एक है जिसे 1939 में क्राउन रिप्रजेंटेटिव पुलिस के रूप में गठित किया गया था। क्राउन रिप्रजेंटेटिव पुलिस द्वारा भारत की तत्‍कालीन रियासतों में आंदोलनों एवं राजनीतिक अशांति तथा साम्राज्यिक नीति के रूप में कानून एवं व्‍यवस्‍था बनाए रखने में लगातार सहायता करने की इच्‍छा के मद्देनजर, 1936 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मद्रास संकल्‍प के मद्देनजर केरिपुबल की स्‍थापना की गई।

आजादी के बाद 28 दिसम्‍बर, 1949 को संसद के एक अधिनियम द्वारा इस बल का नाम केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल दिया गया था। तत्‍कालीन गृह मंत्री सरदार बल्‍लभ भाई पटेल ने नव स्‍वतंत्र राष्‍ट्र की बदलती जरूरतों के अनुसार इस बल के लिए एक बहु आयामी भूमिका की कल्‍पना की थी।

1950 से पूर्व भुज, तत्‍कालीन पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्‍य संघ (पीईपीएसयू) तथा चंबल के बीहड़ों के सभी इलाकों द्वारा केरिपुबल की सैन्‍य टुकडि़यों के प्रदर्शन की सराहना की गई। भारत संघ में रियासतों के एकीकरण के दौरान बल ने एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। जूनागढ़ की विद्रोही रियासत और गुजरात में कठियावाड़ की छोटी रियासत जिसने भारतीय संघ में शामिल होने के लिए मना कर दिया था, को अनुशासित करने में इस बल ने केंद्र सरकार की मदद की।

आजादी के तुरंत बाद कच्‍छ, राजस्‍थान और सिंध सीमाओं में घुसपैठ और सीमा पार अपराधों की जांच के लिए केरिपुबल की टुकडि़यों को भेजा गया। तत्‍पश्‍चात पाकिस्‍तानी घुसपैठियों द्वारा शुरू किए गए हमलों के बाद इनको जम्‍मू-कश्‍मीर की पाकिस्‍तानी सीमा पर तैनात किया गया। भारत के हॉट स्प्रिंग (लदाख) पर पहली बार 21 अक्‍तूबर 1959 को चीनी हमले को केरिपुबल ने नाकाम किया। केरिपुबल के एक छोटे से गश्‍ती दल पर चीन द्वारा घात लगाकर हमला किया जिसमें बल के दस जवानों ने देश के लिए सर्वोच्‍च बलिदान दिया। उनकी शहादत की याद में देश भर में हर साल 21 अक्‍तूबर को पुलिस स्‍मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है।

1962 के चीनी आक्रमण के दौरान एक बार फिर बल ने अरूणाचल प्रदेश में भारतीय सेना को सहायता प्रदान की। इस आक्रमण के दौरान केरिपुबल के 8 जवान शहीद हुए। पश्चिमी और पूर्वी दोनों सीमाओं पर 1965 और 1971 में भारत पाक युद्ध में भी बल ने भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया।
भारत में अर्द्ध सैनिक बलों के इतिहास में पहली बार महिलाओं की 1 टुकड़ी सहित केरिपुबल की 13 कंपनियों को आतंवादियों से लड़ने के लिए भारतीय शांति सेना के साथ श्रीलंका में भेजा गया। इसके अलावा, संयुक्‍त राष्‍ट्र शांति सेना के एक अंग के रूप में केरिपुबल के कर्मियों को हैती, नामीबीया, सोमालिय और मालद्वीव के लिए वहां की कानून और व्‍यवस्‍था की स्थिति से निपटने के लिए भेजा गया।

70 के दशक के पश्‍चात जब उग्रवादी तत्‍वों द्वारा त्रिपुरा और मणिपुर में शांति भांग की गई तो वहां केरिपुबल बटालियनों को तैनात किया गया था। इसी दौरान ब्रह्मपुत्र घाटी में भी अशांति थी। केरिपुबल की ताकत न केवल कानून और व्‍यवस्‍था बनाए रखने के लिए बल्कि संचार तंत्र व्‍यवधान मुक्‍त रखने के लिए भी शामिल किया गया। पूर्वोत्‍तर में विद्रोह की स्थिति से निपटने के लिए इस बल की प्रतिबद्धता लगातार उच्‍च स्‍तर पर है।

80 के दशक से पहले पंजाब में जब आतंकवाद छाया हुआ था, तब राज्‍य सरकार ने बड़े स्‍तर पर के. रि. पु. बल की तैनाती की मांग की थी।

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