Kab hai Shaheedi Diwas ?

 Kab hai Bhagat Singh death anniversary : Kab hai शहीदी दिवस

 
भारत के लोग जानते हैं कि 90 साल पहले यानी 23 मार्च 1931 को आज के दिन युवा देशभक्त वीर जवान भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजों द्वारा फांसी दे दी गई थी। उनकी शहादत को पूरा देश नतमस्तक होकर हमेशा नमन करता है। 

  23 मार्च को शहीदी दिवस क्यों कहते हैं ? Martyrs day: Bhagat singh


  ठीक नब्बे साल पहले 23 मार्च 1931 को क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को जब फांसी की सजा सुनाई गई थी तो उन्होंने माफ करने की प्रार्थना करने की बजाए भारतवर्ष को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करवाने के लिए इन वीर सपूतों ने हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया था, इसलिए इस दिन को शहीदी दिवस कहा जाता है। भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु व सुखदेव को फांसी दिया जाना हमारे देश इतिहास की सबसे बड़ी एवं महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक माना जाता है। भारत के इन महान सपूतों को ब्रिटिश हुकूमत ने लाहौर जेल में फांसी पर लटकाया था। इन स्वंतत्रता सेनानियों के बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। इन नौजवानों की इतनी लोकप्रियता थी कि अंग्रेज सरकार इनसे डरी हुई थी। इनके फांसी देने के समय कहीं भारत का युवा जेल को ही न तोड़ डाले, इस डर से अंग्रेजों ने इन तीनों को तय तारीख से पहले ही फांसी दे दी थी। तीनों को 24 मार्च को फांसी दी जानी था। मगर देश में जनाक्रोश को देखते हुए गुप-चुप तरीके से एक दिन पहले ही 23 मार्च को फांसी पर लटका दिया गया। फांसी की प्रक्रिया को पूरी तरह से गुप्त रखा गया था। 

 लाला लाजपत राय की मौत का बदला kisne लिया ?


  जब आजादी का बिगुल बजा हुआ था तो 27 सितंबर 1907 को अविभाजित पंजाब के लायलपुर (अब पाकिस्तान) में जन्मे भगत सिंह बहुत छोटी उम्र से ही आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए थे। घर मे देशभक्ति का माहौल था। उनकी लोकप्रियता से ब्रिटिश हुक्मरान भयभीत रहते थे। वर्ष 1928 में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या करने के आरोप में उन्हें फांसी की सजा दी गई थी। हालांकि वे उस ब्रिटिश पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट को मारना चाहते थे जिसने लाला लाजपतराय के जुलूस पर लाठीचार्ज का आदेश दिया था, जिसमें लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई थी। क्योंकि लाहौर में 30 अक्टूबर 1928 को एक बड़ी घटना घटी जब लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया. पुलिस ने लाला लाजपतराय की छाती पर निर्ममता से लाठियां बरसाईं गई.  वे बुरी तरह घायल हो गए और इस कारण 17 नवंबर 1928 को उनकी मौत हो गई. इस लाठीचार्ज का आदेश क्रूर सुप्रीटेंडेंट जेम्स ए स्कॉट ने लाठीचार्ज का आदेश दिया था। लाजपतराय  की मृत्यु से सारा देश भड़क उठा  और चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने की प्रतिज्ञा की.

कैसे हुई सांडर्स की हत्या? How murdered Sander's 

लाला की  के शहीद होने के ठीक एक माह बाद 17 दिसंबर 1928 दिन  स्कॉट की हत्या के लिए निर्धारित किया गया. लेकिन निशाने में थोड़ी सी चूक हो गई. स्कॉट की जगह असिस्टेंट सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस जॉन पी सांडर्स क्रांतिकारियों का निशाना बन गए. सांडर्स जब लाहौर के पुलिस हेडक्वार्टर से निकल रहे थे, तभी भगत सिंह और राजगुरु ने उन पर गोली चला दी। आजादी के मतवाले भगत सिंह व उसके साथियों ने सांडर्स का काम तमाम कर दिया। 

  जेल में भगत सिंह ने लिखे क्रांतिकारी विचार-

Inklab Jindabad 

 आमतौर पर आदमी जेल का नाम आते ही खौफ खाने लगता है लेकिन भगत सिंह ऐसे निडर व सच्चे देशभक्त थे जिन्होंने अंग्रेजों से डरना तो दूर , अपने देश के युवाओं को आजादी के आंदोलन में भागीदारी के लिए प्रेरित करने हेतु अपनी कलम व ओजस्वी वाणी का प्रभाव डाला। भगत सिंह द्वारा जेल में लिखे क्रान्तिकारी विचारों व साहसी कारनामों के कारण ही वे युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए। उन्होंने 8 अप्रैल 1929 को अपने साथियों के साथ *इंकलाब जिंदाबाद* का नारा लगाते हुए केंद्रीय विधानसभा में बम फेंके थे। सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट करके उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ खुले विद्रोह ऐलान कर दिया था। इनकी बहादुरी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन्होंने असेंबली में बम फेंककर भागने से मना कर दिया। भगत सिंह करीब 2 साल जेल में रहे। इस दौरान वे ओजस्वी लेख लिखकर अपने क्रान्तिकारी विचार युवाओं तक पहुंचाते रहते थे।

लेनिन की जीवनी  kisne  pdhi ? 

  जेल में रहते हुए भी उनका अध्ययन लगातार जारी रहा। बताया जाता है कि फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे हैं और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए।  इनको कुछ समय अवश्य दिया गया परन्तु माफ नही किया गया। लेकिन क्या आपको पता है कि क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे और वे भारत की आजादी की पक्की नींव रख गए थे। उनके सम्मान में ही हर साल देश मे 23 मार्च को शहीदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

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